लद्दाख — भारत की ऊँची वादियों में बसा क्षेत्र — हाल ही में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आ गया है। इस साल, वहाँ राज्यhood और संवैधानिक सुरक्षा (छठी अनुसूची, Sixth Schedule) की मांग को लेकर आन्दोलन तेज हुआ। वह आन्दोलन जिसे युवा सक्रियतावादी, मौसम-पर्यावरणीय चिंतक, और क्षेत्रीय नेताओं द्वारा आगे बढ़ाया गया था, अब हिंसा, गिरफ्तारी और सख्त कानूनी कार्रवाई की वजह से सुर्खियों में है।
इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में है Sonam Wangchuk — पर्यावरणविद, शिक्षा सुधारक और लद्दाख के अधिकारों के प्रमुख वकील। उनकी भूमिका, उनके आग्रह, उनकी गिरफ्तारी और अदालत-कानूनी रूप से हुए कदम — ये सब इस विवाद में निर्णायक बिंदु बने हैं।
इस लेख में हम क्रमबद्ध रूप से जानेंगे:
- लद्दाख आंदोलन और राज्यhood की पृष्ठभूमि
- सोनम वांगचुक कौन हैं — उनका सफर
- इस वर्ष के आंदोलन की शुरुआत और अनशन
- 24–25 सितंबर की हिंसा — घटनाक्रम
- वांगचुक की गिरफ्तारी, NSA आरोप, स्थानांतरण
- केंद्र सरकार का रुख, उसके दावे और कार्रवाई
- स्थानीय प्रतिक्रिया, युवा आंदोलन, राजनीतिक प्रतिक्रिया
- संवैधानिक, मानवाधिकार एवं नीति-चर्चा
- आगे का राजनीतिक परिदृश्य
- निचोड़
1. लद्दाख आंदोलन और राज्यhood की पृष्ठभूमि
1.1 लद्दाख का राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य
- 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य एवं उसकी अन्य स्थिति में बड़े बदलाव किए गए — आर्टिकल 370 समाप्त किया गया और जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बाँटा गया। लद्दाख को प्रदेश विधायिका रहित संघ शासी प्रदेश (Union Territory without Legislature) बनाया गया।
- इस नए स्वरूप से, लद्दाख के लोगों को राज्य जितना स्वायत नहीं मिला। उन्हें अपनी स्थानीय स्वशासन, कानून-सुरक्षा और संसाधन नियंत्रण में सीमित अधिकार मिले। यह असंतोष स्थानीय समुदायों में समय के साथ बढ़ता गया।
- लद्दाख आंदोलन (Ladakh protests) का उद्देश्य है पूर्ण राज्यhood, छठी अनुसूची (Sixth Schedule) में शामिल होना, स्थानीय आरक्षण (locals quota), नियुक्ति और नौकरी में लाभ, और संविधानिक सुरक्षा।
- इस आंदोलन के मुख्य समर्थक संगठन हैं: Leh Apex Body (LAB), Kargil Democratic Alliance (KDA), स्थानीय युवा संगठन, और व्यक्तिगत नेता जैसे वांगचुक।
- केंद्र सरकार ने एक उच्चस्तरीय समिति (High-Powered Committee, HPC) और उप-समितियां बनाई हैं, जिनसे बातचीत होती रही है।
1.2 विरोध, असंतोषों की जड़
- भू-राजनीति, सीमांत पर्यावरणीय दबाव, संसाधन उपयोग, युवा नौकरियों की कमी — ये सब कारण हैं कि लद्दाख में असंतोष फैला।
- लद्दाख की ऊँची भूभागीय स्थिति, सीमावर्ती दशाएँ, सीमित संसाधन और बढ़ती सेना- दूरी — ये सब क्षेत्र को और अधिक संवेदनशील बनाते हैं।
- लद्दाख में पर्यावरणीय संकट — ग्लेशियर पिघलना, जल संकट आदि — स्थानीय लोगों की चिंता का विषय रहा है, और वांगचुक ने उसे आंदोलन की एक थ्रेड बनाया।
इस पृष्ठभूमि में, 2025 के आंदोलन ने तीव्र रूप पकड़ा।
2. सोनम वांगचुक कौन हैं — उनका सफर
- सोनम वांगचुक एक प्रसिद्ध लद्दाखी शिक्षक, पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने SECMOL (Students’ Educational & Cultural Movement of Ladakh) की स्थापना की थी।
- बाद में उन्होंने HIAL (Himalayan Institute of Alternatives, Ladakh) की स्थापना की — शिक्षा, डिज़ाइन, और स्थिरता की दिशा में काम करने वाली संस्था।
- उन्हें “आइस स्टूपा (Ice Stupa)” जैसी नवाचारी परियोजनाओं के लिए जाना जाता है — ऊँची हिमालयी इलाकों में बर्फ जमा करके जल भंडारण की तकनीक।
- वांगचुक वर्षों से लद्दाख के संवैधानिक अधिकार और स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं — वे कई अनशन, मार्च और संवादों में सक्रिय रहे हैं।
- उनकी आवाज युवाओं में प्रभावशाली रही — “Gen Z आंदोलन” शब्द अक्सर उनके समर्थकों द्वारा उपयोग किया गया।
उनका व्यक्तित्व इस संघर्ष का प्रतीक बन गया — शिक्षा, पर्यावरण और अधिकारों को जोड़ने वाला मंत्र।
3. इस वर्ष आंदोलन की शुरुआत और अनशन
3.1 अनशन की शुरुआत
- इस वर्ष 10 सितंबर 2025 को वांगचुक ने 35-दिन का अनशन शुरू किया, जिसमें मांग थी: छठी अनुसूची (Sixth Schedule) में शामिल होना, राज्यhood, संविधानिक सुरक्षा और स्थानीय अधिकारों की गारंटी।
- इस अनशन में कुल लगभग 15 लोग जुड़े थे।
- इसके पीछे यह तर्क था कि अन्य इस आंदोलन को दबाने वाले दबावों के बीच, यह अनशन आवाज़ उठाने का शांतिपूर्ण तरीका था।
3.2 बातचीत और बाधाएँ
- सरकारी स्तर पर, High-Powered Committee (HPC) और उपसमितियों से वार्ता होती रही।
- लेकिन आंदोलनकारियों ने कहा कि बातचीत उल्टी गुमराह करने वाली और नतीजेहीन रही है — सरकार विलंब कर रही है।
- आंदोलनकारियों और युवा (Gen Z) ने सरकार को “समय-bound प्रतिबद्धता” देने की मांग की।
3.3 अनशन के खत्म होने का निर्णय
- 24 सितंबर 2025 को, अनशन के 15वें दिन वांगचुक ने घोषणा की कि वे अनशन तोड़ रहे हैं क्योंकि हिंसा फैल गई है। उन्होंने कहा: “आज लेह में हिंसा हुई है। मेरी शांतिपूर्ण राह संदेश विफल हो गया। मैं युवाओं से विनती करता हूँ कि इस अशांति को बंद करो — यह हमारे आंदोलन को नुकसान पहुँचाती है।”
- इस बीच, कई अनशनकर्ता स्वास्थ्य कारणों से अस्वस्थ हुए और अस्पताल में भर्ती हो गए।
4. 24–25 सितंबर की हिंसा — घटनाक्रम
4.1 व्यापक आंदोलन से हिंसात्मक मोड़
- 24 सितंबर को, लेह में बंद व प्रदर्शन हुए। कई वाहनों, कार्यालयों को आग लगा दी गई, जिसमें BJP कार्यालय भी शामिल था।
- प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच पत्थरबाजी, लाठीचार्ज, आंसू गैस का उपयोग हुआ।
- पुलिस ने फायरिंग की — कम से कम 4 लोग मारे गए, दर्जनों घायल हुए। सरकारी सूत्रों ने कहा कि पुलिस को “स्व-सुरक्षा” में गोली चलानी पड़ी।
- जबकि प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि अस्पष्ट परिस्थितियों में गोली चलाई गई और कई निर्दोष लोग मारे गए।
- सूचना मिली है कि मंदिर, वाहन, कार्यालय जला दिए गए।
- प्रशासन ने कर्फ्यू लागू किया, इंटरनेट सेवा निलंबित की और एक्शन लिया।
4.2 मीडिया व रिपोर्टिंग
- कई अखबारों और न्यूज़ एजेंसियों ने लाइव कवरेज दी — वीडियो फुटेज में आग, धुएँ, पुलिस कार्रवाई दिखी। The Times of India+3The Indian Express+3The Indian Express+3
- सोशल मीडिया पर भी वीडियो वायरल हुए, लोगों ने प्रदर्शनकारियों और पुलिस दोनों की कटाक्ष की।
- सरकार की ओर से बयान जारी किए गए कि यह आंदोलन “उत्तेजक भाषणों द्वारा भड़काया गया”। www.ndtv.com+3The Times of India+3Press Information Bureau+3
5. वांगचुक की गिरफ्तारी, NSA आरोप और स्थानांतरण
5.1 गिरफ्तारी और NSA
- 26 सितंबर 2025 को, सोनम वांगचुक को पुलिस ने गिरफ्तार किया।
- गिरफ्तारी की खबर के साथ ही यह खुलासा हुआ कि उन पर NSA (National Security Act) लगाया गया है, जो बड़ी अवधि तक निरुद्ध करने की शक्ति देता है।
- NSA लगने के बाद वह लेह से बाहर ले जाए गए।
- मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि उन्हें जोधपुर सेंट्रल जेल स्थानांतरित किया गया।
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5.2 संगठन पर कार्रवाई: FCRA लाइसेंस निरस्तीकरण
- गिरफ्तारी के साथ ही, केन्द्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने वांगचुक के NGO, SECMOL, का FCRA लाइसेंस रद्द कर दिया। यह लाइसेंस विदेशी दान प्राप्त करने के लिए जरूरी था। The Economic Times+1
- सरकार ने यह आरोप लगाया है कि उनके NGO ने फंडिंग नियमों का उल्लंघन किया है और वित्तीय अनियमितताएँ की हैं।
- इससे NGO की बाहरी सहायता बंद हो जाएगी और उसकी कार्यशक्ति प्रभावित होगी।
5.3 अन्य आरोप और दावे
- केंद्र सरकार ने यह दावा किया है कि वांगचुक ने “उत्तेजक भाषण” दिए, जिनसे भीड़ भड़की और विरोध हिंसात्मक हुआ।
- सरकार ने कहा कि आंदोलनकारियों ने BJP कार्यालय और निर्वाचन कार्यालय को निशाना बनाया।
- वांगचुक की ओर से कहा गया है कि वे हिंसा का समर्थन नहीं करते, और उनका आंदोलन शांतिपूर्ण था। उन्होंने आरोपों को खारिज किया है।
- मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी उल्लेख है कि उनकी पत्नी ने दावा किया है कि गिरफ्तारी के समय घर की तलाशी ली गई, और उन्हें “अपराधी” जैसा व्यवहार मिला।
6. केंद्र सरकार का रुख, उसके दावे और कार्रवाई
6.1 सरकारी दावे और तर्क
- मोदी सरकार / गृह मंत्रालय ने सार्वजनिक बयान दिए कि वांगचुक के भाषणों ने जनता को भड़काया।
- उन्होंने कहा कि आंदोलन में राजनीतिक साजिश है और “Gen Z आंदोलन” को प्रेरित करने वाला ढांचा तैयार किया गया।
- गृह मंत्रालय ने SECMOL के FCRA लाइसेंस को रद्द करने का औपचारिक आदेश दिया।
- अधिकारियों ने कहा कि सरकार Leh Apex Body और Kargil Democratic Alliance के साथ बातचीत कर रही है। Press Information Bureau+2The Indian Express+2
- सरकार ने यह तर्क पेश किया कि आंदोलनकारियों ने कानून-व्यवस्था को चुनौती दी।
6.2 आलोचना, विरोध और प्रतिक्रिया
- विपक्षी दलों और मानवाधिकार समूहों ने कहा कि सरकार ने न्यायोचित सुनवाई के बिना गिरफ्तारी और सख्ती की।
- उन्होंने यह आरोप लगाया कि यह एक दमनकारी रवैया है, जिसमें आलोचनाओं को दबाया जा रहा है।
- कुछ नागरिक और बुद्धिजीवी कहते हैं कि सरकार को संवाद और समझौते की नीति अपनानी चाहिए न कि कारावास और प्रतिबंध।
- यदि सरकार की कार्रवाई नियंत्रित और पारदर्शी न रही, तो यह विवाद और अस्थिरता को बढ़ा सकती है।
7. स्थानीय प्रतिक्रिया, युवा आंदोलन, राजनीतिक प्रतिक्रिया
7.1 युवा “Gen Z” आंदोलन
- युवा कार्यकर्ताओं ने जोर दिया कि यह आंदोलन उनका “स्वाधीनता-आंदोलन” है।
- उन्हें आरोप लगे कि सरकार ने युवा ऊर्जा को दबाने की कोशिश की है।
- कई युवा प्रदर्शनकारी घायल हुए, और सोशल मीडिया पर उनकी आवाज़ गूंज रही है।
- “Gen Z आंदोलन” शब्द विशेष रूप से मीडिया और आंदोलनकारियों ने इस्तेमाल किया है।
7.2 स्थानीय नेतृत्व और उत्प्रेरक
- लेह और कारगिल के स्थानीय सामाजिक व राजनीतिक निकायों ने कार्रवाई की मांग की।
- लेह Apex Body (LAB) ने बंद और विरोध जारी रखा।
- स्थानीय आबादी ने कहा कि उनकी आवाज़ लंबे समय से दबाई गई थी — अब वे बदलाव चाहते हैं।
7.3 राजनीतिक दलों की बयानबाज़ी
- विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार की कार्रवाई को अलोकतांत्रिक बताया।
- स्थानीय प्रतिनिधियों ने कहा कि राज्यhood मांगने वाले लोगों को राजनीतिक मंच, संवैधानिक रास्ता, सुधार वाला संवाद मिलना चाहिए।
- सरकार समर्थक दलों ने कहा है कि अगर आंदोलन हिंसात्मक हो जाए, तो कानून अपना रास्ता लेगा।
8. संवैधानिक, मानवाधिकार एवं नीति-चर्चा
8.1 संवैधानिक दायरा
- NSA (National Security Act) का उपयोग — यह संवैधानिक स्वतंत्रता पर एक बड़ा कदम है। ऐसा कानून देर तक बंदी रख सकता है, समीक्षा सीमित होती है। Hindustan Times+1
- FCRA लाइसेंस निरस्तीकरण — NGO को विदेशी दान बंद करना उनके मिशन को बाधित कर सकता है।
- किस हद तक सरकार यह कह सकती है कि आंदोलन “कानून को चुनौती है”? यह प्रश्न संवैधानिक नियंत्रण का है।
- क्या संघर्ष के रूप में विरोध की आज़ादी सीमित हो सकती है? विरोध अधिकार है, लेकिन जब हिंसा हो जाए, तो कार्रवाई हो सकती है — लेकिन न्यायोचित प्रक्रिया आवश्यक है।
8.2 मानवाधिकार और स्वतंत्रता
- गिरफ्तारी से पहले सूचना देना, कानूनी सलाह, न्यायोचित सुनवाई — ये न्यासाधिकार हैं।
- इंटरनेट बंद करना, सूचना प्रतिबंध लगाना — ये कदम सूचना की आज़ादी पर असर डालते हैं।
- यदि सरकार कार्रवाई पारदर्शी नहीं रखे, तो यह अन्य आंदोलनकारियों और नागरिकों में डर पैदा कर सकता है।
8.3 नीति और न्यायालय की भूमिका
- न्यायालय (उच्च न्यायालय / सर्वोच्च न्यायालय) को हस्तक्षेप करना चाहिए यदि कार्रवाई असंवैधानिक हो।
- नीति-निर्माता को यह सोचना चाहिए कि क्षेत्रीय असमर्थता और सामाजिक असंतोष को कैसे कानूनी माध्यमों से हल करें।
- लोकतंत्र में आंदोलनों की भूमिका अती अनदेखी न हो — संवाद, नीति, संवैधानिक बचाव — ये आवश्यक हैं।
9. आगे का राजनीतिक परिदृश्य
- वांगचुक की निरुद्धि और NSA आरोप यह संकेत कर सकते हैं कि सरकार ज्यादा कठोर कदम उठा सकती है अगर आंदोलन आगे बढ़े।
- लेकिन इससे आंदोलनकारी और संघर्ष अधिक जुझारू हो सकते हैं — सरकार को सार्वजनिक समर्थन खोने का जोखिम।
- यदि न्यायालय ने उनका पक्ष लिया, तो यह सरकार की कार्रवाई की छलनी करेगी।
- आगामी वार्ताओं (HPC सहित) महत्वपूर्ण होंगे: यदि सार्थक सौदे हों, तो शांति लौट सकती है।
- स्थानीय नेतृत्व और युवा आंदोलन को अधिक रणनीति और संयम की जरूरत होगी।
- इस घटनाक्रम से यह संदेश गया कि केंद्र और क्षेत्रीय आवाज़ के बीच संतुलन बनाए रखना कितना संवेदनशील है।
10. निचोड़
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी और लद्दाख आंदोलन की हिंसा ने भारत के लोकतंत्र, संवैधानिक अधिकारों और केंद्र-प्रदेश संबंधों की जटिलता को उजागर किया है।
- यह आंदोलन सिर्फ राज्यhood की मांग नहीं — यह संवैधानिक सुरक्षा, स्थानीय हक, युवा आवाज़ और पर्यावरणीय चिंताओं को जोड़ता है।
- सरकार द्वारा उठाए गए कदम — NSA आरोप, FCRA लाइसेंस रद्द करना — यह संदेश देते हैं कि केंद्र अधिक नियंत्रण रखने का रुख रख सकती है।
- लेकिन न्यायालय, नागरिक समाज और आंदोलनकारियों की सतर्कता लोकतंत्र की रक्षा करने में अहम होगी।