National Unemployment Day 2025: जनवरी से सितंबर तक भारत में नौकरियों का हाल | बेरोज़गारी रिपोर्ट

राष्ट्रीय बेरोज़गारी दिवस 2025 के मौके पर हम आपके लिए लाए हैं एक विस्तृत रिपोर्ट — जनवरी से सितंबर 2025 तक भारत में रोजगार और नौकरियों की पूरी अपडेट। इस वीडियो/लेख में जानिए:

  • 2025 की पहली तीन तिमाहियों में बेरोज़गारी दर का हाल
  • किन सेक्टर्स में नौकरी बढ़ीं और कहाँ घटीं
  • युवाओं और महिलाओं पर बेरोज़गारी का असर
  • सरकारी भर्ती ड्राइव और स्किल इंडिया जैसी योजनाओं की भूमिका
  • MSME और टेक सेक्टर की चुनौतियाँ व अवसर
  • भविष्य के लिए जोखिम और समाधान

अगर आप नौकरी की तलाश में हैं, या भारत के रोजगार परिदृश्य को समझना चाहते हैं, तो यह रिपोर्ट आपके लिए है।

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राष्ट्रीय बेरोज़गारी दिवस — 2025 का बैकड्रॉप
राष्ट्रीय बेरोज़गारी दिवस के मौके पर देश का ध्यान एक अहम सवाल पर लौटता है: 2025 के पहले नौ माह (जनवरी–सितंबर) में रोजगार का परिदृश्य कैसा रहा? रोजगार सृजन में क्या सकारात्मक संकेत मिले और कौन-से क्षेत्र दबाव में रहे — ये सवाल न केवल आर्थिक नीतियों के लिए महत्वपूर्ण हैं बल्कि उन लाखों परिवारों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के लिए भी बिल्कुल व्यवहारिक हैं।

प्रमुख संकेतक — बुनियादी तस्वीर (जनवरी–सितंबर 2025)

2025 के पहले तीन तिमाहियों में उपलब्ध आधिकारिक और विश्लेषणात्मक डेटा से स्पष्ट रुझान सामने आते हैं: बेरोज़गारी दर में महीने-वार उतार-चढ़ाव देखने को मिला, पर कुल मिलाकर साल के मध्य तक रिकवरी के संकेत नज़र आए — खासकर ग्रामीण इलाकों और कुछ सर्विस सेक्टर में। CMIE और सरकारी PLFS से आने वाले डेटा ने यह दर्शाया कि 2025 की पहली छमाही में क्रमिक सुधार की झलक मिली है, हालाँकि चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों और असमान रिकवरी (स्तरगत/लैंगिक/क्षेत्रीय) का मामला बना रहा।

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तिमाही-वार संक्षेप

Q1 (जनवरी–मार्च 2025)

साल की शुरुआत में जॉब मार्केट ने मिक्स्ड संकेत दिए। कुछ सर्विस-उद्योगों और बड़े कॉर्पोरेट हायरर्स ने साल के पहले महीने में भर्तियों के संकेत भेजे, पर मैन्युफैक्चरिंग व कुछ ट्रेड-निर्भर छोटे व्यवसाएँ (MSMEs) अभी भी नकदी-संकट और माँग-अनिश्चितता से जूझ रही थीं। Naukri और अन्य निजी हायरिंग इंडेक्स के मुताबिक़ फ्री-लांसर/कॉन्ट्रैक्ट/टेम्पररी रोल्स में बढ़ोतरी हुई, पर स्थायी नौकरियों में सुधार धीमा रहा।

Q2 (अप्रैल–जून 2025)

दूसरी तिमाही में सरकार की कुछ नौकरी-लिंक्ड योजनाओं और राज्य स्तर के बड़े भर्ती ड्राइव (शिक्षक, पुलिस, स्वास्थ्य) के कारण सार्वजनिक क्षेत्र में रिक्तियों की पूर्ति हुई — जिससे कुल रोजगार को थोड़ासा सहारा मिल चुका। PLFS की मासिक/त्रैमासिक रिपोर्टें इस अवधि में रोजगार-संबंधी कुछ बहुल डेटा जारी करती रहीं, जिनका उपयोग नीतिगत विश्लेषण के लिए किया गया। वहीं IT/टेक सेक्टर में ऑटोमेशन-संबंधी परिवर्तन कुछ पुनर्संरचना का कारण बने।

Q3 (जुलाई–सितंबर 2025 — हालिया स्थिति)

जुलाई से सितंबर तक के महीनों में मिली फीडबैक यह है कि व्हाइट-कॉलर हायरिंग में नरमी के बावजूद कैंपस भर्ती में एक नया उछाल आया — खासकर वित्त, लाइफ-साइंसेस और कंज़्यूमर-गुड्स में, जिससे फ्रेशर रिक्रूटमेंट का माहौल बेहतर हुआ। दूसरी तरफ़ कुछ बड़ी टेक कंपनियों में इस वर्ष के मध्य में चले रिइंस्ट्रक्चरिंग और AI-अनुकूलन के कारण छँटनी की खबरें भी आईं। MSME सेक्टर ने नये रजिस्ट्रेशन और कुछ राज्यों में उत्पादन-वर्धन के ज़रिये रोजगार बनाए — पर बड़े पैमाने पर स्थिर रोजगार सृजन की चुनौती बनी रही।

कौन-से सेक्टर आगे बढ़े और कौन दबे?

बढ़त दिखाने वाले सेक्टर:

  • कैंपस-हायरिंग तथा फ्रेशर-रोल्स: वित्तीय सेवाएँ, लाइफ-साइंसेस और कंज्यूमर-गुड्स सेक्टर में कॉलेज-हायरिंग का रिबाउंड दिखा, जिससे जून-सितंबर 2025 में ग्रेजुएट्स के लिए अवसर बढ़े। The Economic Times
  • MSMEs और लोकल मैन्युफैक्चरिंग: Udyam रजिस्ट्रेशन के आंकड़ों और MSME सर्वे से पता चलता है कि कई सूक्ष्म/लघु उद्यमों ने रोजगार बनाए रखा या धीरे-धीरे बढ़ाया। हालांकि ये नौकरियाँ अक्सर असंगठित और कम स्थायी होती हैं।

दबाव में रहने वाले सेक्टर:

  • टेक/आईटी में पुनर्संरचना तथा AI-अनुकूलन: 2025 में AI और ऑटोमेशन पर तेज़ निवेश ने कुछ जगहों पर पारंपरिक रोल्स को कम किया; कुछ बड़ी फर्मों में तदनुसार पोजीशन-काटौती और रिइंस्ट्रक्चरिंग की खबरें आईं। यह प्रवृत्ति विशेषकर मिड-लेवल रोल्स में देखी गई।
  • कैलेंडर-सेंसेटिव सर्विस सेक्टर्स: हॉस्पिटैलिटी/ट्रैवल ने कुछ उछाल देखा पर साइन-ऑफ में अस्थिरता बनी रही, खासकर स्थानीय मांग के उतार-चढ़ाव के कारण। (नौकरी-इंडेक्स संकेत)। Naukri

युवाओं और महिलाओं पर असर

युवा (15–29 आयु) समूह के लिए 2025 में मिले अवसर मिश्रित रहे — कैंपस हायरिंग का उछाल नए ग्रेजुएट्स के लिए अच्छा संकेत है, पर अनुभवहीन युवा श्रमिकों के लिए स्थिर, लंबे-अवधि अवसर सीमित रहे। महिलाओं की श्रम-बाज़ार भागीदारी (LFPR) अभी भी पूर्व-स्तर से नीचे बनी हुई है; PLFS और अन्य विश्लेषण यह दिखाते हैं कि महिला-भागीदारी में सुस्ती और घरेलू/देखभाल-कार्य से बाहर निकलने की चुनौतियाँ प्रबल रहीं। यह असंतुलन रोजगार की समावेशिता का बड़ा प्रश्न बनकर खड़ा है। Stats Ministry+1

सरकारी नीतियाँ और भर्ती-ड्राइव (जन–सितंबर 2025)

2025 की पहली छमाही में केंद्र व राज्यों ने पारंपरिक भर्ती (शिक्षक, पुलिस, स्वास्थ्य) और कौशल-विकास कार्यक्रमों पर ज़ोर दिया। कुछ राज्यों ने बड़े-पैमाने पर टीचर/सरकारी स्टाफ़ की भर्ती अभियान चलाए — उदाहरण के तौर पर हालिया राज्य स्तरीय भर्ती नोटिस/ड्राइव (प्रात्यक्षिक समाचार रिपोर्ट) ने कई हज़ार पदों की घोषणा की। साथ ही केंद्र/राज्य के स्किल इंडिया और कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों को तेज़ किया गया ताकि युवा मांग वाले कौशल सीख सकें। PLFS/मासिक बुलेटिन से मिलने वाले संकेतों के आधार पर सरकार ने आंकड़ों के माध्यम से लक्षित हस्तक्षेप की रूपरेखा पर काम जारी रखा।

निजी हायरिंग-इंडेक्स और बाजार-सेंटिमेंट

Naukri के JobSpeak और अन्य निजी इंडेक्स ने दिखाया कि व्हाइट-कॉलर रिकवरी की रफ्तार सतत नहीं पर सकारात्मक है — कई गैर-आईटी सेक्टर्स में हायरिंग बढ़ी। वहीं CMIE/ट्रेंड-डेटा ने बेरोज़गारी-दर के महीने-वार उतार-चढ़ाव का संकेत दिया, जो अर्थव्यवस्था की अस्थिर माँग और तात्कालिक कारकों से प्रभावित रहा। निवेश-चक्र और वैश्विक मांग में उतार-चढ़ाव से भी हायरिंग पर असर पड़ा।

संकट/जोखिम (जो अभी भी मौजूद हैं)

  1. AI-प्रवर्तन और स्किल-गैप: ऑटोमेशन से कुछ पारंपरिक जॉब्स पर असर पड़ेगा; यदि स्किल-अपग्रेडेशन तेज़ न हुआ तो मिड-लेवल श्रमिकों के लिए जोखिम बढ़ेगा। The Financial Express
  2. महिला-LFPR की कमी: महिलाओं का श्रम-बाज़ार में कम भाग लेना आर्थिक वृद्धि की संपूर्णता को रोक सकता है। cmie.com
  3. MSME का वित्तीय स्ट्रेस: कई सूक्ष्म/लघु उद्यम नकदी-संचार में बाधाओं से जूझते हैं; यदि वे ठप्प पड़े तो रोजगार पर असर होगा।

अवसर (जहाँ नौकरी बन सकती है)

  • कैंपस-हायरिंग और फ्रेशर-रोल्स: कंपनियाँ रणनीतिक रूप से फ्रेश-ट्रेन किए गए टैलेंट पर ध्यान दे रही हैं — यह ग्रेजुएट्स के लिए अवसर पैदा कर रहा है।
  • Skill-based upskilling: कौशल-आधारित प्रशिक्षण (डिजिटल, AI-related, हेल्थकेयर व जीवन-विज्ञान) से बेरोज़गारों को नया मार्ग मिल सकता है।
  • सरकारी भर्ती और सार्वजनिक सेवाएँ: राज्यों व केंद्र द्वारा घोषित बड़े भर्ती ड्राइव (शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस) तुरंत रोजगार अवसर खोलते हैं।

निचोड़ — क्या बदला, क्या स्थिर रहा?

जनवरी–सितंबर 2025 का सार यह है कि रोजगार-बाज़ार में स्थायी, बड़े पैमाने पर सुधार की गति मध्यम रही। कुछ सेक्टर्स ने स्पष्ट उछाल दिया (उदाहरण: कैंपस-हायरिंग), जबकि टेक सेक्टर में संरचनात्मक परिवर्तन (AI/ऑटोमेशन) ने अस्थिरता लाई। सरकारी भर्ती-पुल और MSME-रेसिलिएन्स ने रोजगार में सहारा दिया, पर महिला-भागीदारी और मिड-लेवल रोल्स की सुरक्षा अभी चिंता का विषय बनी हुई है। कुल मिलाकर, रिकवरी सतत है पर विषम; राजनीति-आर्थिक निर्णयों और कौशल-नीति के तेज़ क्रियान्वयन से ही यह रिकवरी समावेशी और टिकाऊ बनेगी।

सुझाव (नीति-निर्माताओं व नौकरी-ढूँढने वालों के लिए)

  1. कुशल संक्रमण: सरकार व नॉन-प्रॉफिट सेक्टर को मिलकर स्किल-ट्रांसफर पहलें तेज करनी चाहिए— विशेषकर डिजिटलीकरण और AI-संबंधी पुनःप्रशिक्षण।
  2. महिला-समावेशन: क्रेडिट/डिजिटल-वर्क/कौशल-प्रोग्राम महिलाओं के लिए लक्षित किए जाएँ ताकि LFPR बढ़ सके। cmie.com
  3. MSME समर्थन: MSME के लिये आसान क्रेडिट, बाज़ार पहुँच और टेक-अपग्रेडेशन से स्थानीय रोजगार सुरक्षित होंगे। India Brand Equity Foundation
  4. पारदर्शी रोजगार-डेटा: PLFS व अन्य मासिक बुलेटिनों को ताज़ा कर, नीति-निर्माण हेतु समयोचित डेटा साझा करते रहना चाहिए। Stats Ministry

अंत में — राष्ट्रीय बेरोज़गारी दिवस का संदेश

राष्ट्रीय बेरोज़गारी दिवस सिर्फ़ आँकड़ों का दिन नहीं है — यह देश के युवा, महिलाएँ और श्रमिक वर्ग के सामने खड़ी वास्तविक चुनौतियों और अवसरों पर नज़र डालने का दिन है। 2025 के जनवरी–सितंबर के आंकड़े बताते हैं कि जहाँ नयी नौकरियाँ और कैंपस-हायरिंग ने उम्मीद जगाई हैं, वहीं AI-चालित परिवर्तन, महिलाओं की कम भागीदारी और MSME-संकट जैसी समस्याएँ अभी भी निर्णायक हैं। यदि नीति-निर्माता, उद्योग और समाज मिलकर कौशल, समावेशन और रोजगार-सुविधा पर काम करें तो अगला वित्तीय वर्ष अधिक समृद्ध और रोजगारोन्मुख़ बन सकता है।

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