07 अगस्त 2025 | TalkinTrend हिंदी डेस्क
#votechori लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाल ही में चुनाव आयोग (ECI) और बीजेपी पर चुनाव प्रक्रिया में गंभीर गड़बड़ी का आरोप लगाया है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में “वोट चोरी” (Vote Theft) की पुष्टि करने वाले “एटम-बम” सबूतों का दावा किया है, जिसमें विशेषकर कर्नाटक और महाराष्ट्र की मतदाता सूची में संदिग्ध परिवर्तन और फर्जी वोटर्स की संख्या पर बल दिया गया है। आइए विस्तार से जानते हैं, क्या कहा गया, क्या हुआ और क्या हो सकता है आगे?
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एटम-बम’ साबित Beefed-up आरोपों का बेस क्या है?
राहुल गांधी ने कहा कि उनके पास “एटम-बम” प्रमाण (undisputed evidence) है, जो दिखाता है कि चुनाव आयोग बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी प्रक्रिया में कारस्तानी कर रहा है The Times of India। उन्होंने इस आरोप को कर्नाटक की महादेवपुरा विधानसभा सीट के संदर्भ में पेश किया, जहां कांग्रेस के आंतरिक सर्वे में जीत अनुमानित थी, लेकिन वास्तविक परिणाम काफी उलट रहे
राहुल ने आरोपित पाँच तरीके बताकर सबूत पेश किए:
राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ** पांच प्रमुख तरीकों से वोट चोरी का खुलासा** किया:
- डुप्लिकेट मतदाता – लगभग 12,000 नाम दो या ज़्यादा जगहों पर दर्ज
- गलत या फर्जी पते – 40,000 से ज़्यादा वोटर्स के एड्रेस संदिग्ध
- एक ही पते पर भारी संख्या में मतदाता – एक एड्रेस पर 50–60 वोटर्स
- अवैध फोटो या फोटो की कमी – लगभग 4,132 मतदाता कार्ड में फोटो गायब या पहचान योग्य नहीं
- फॉर्म‑6 का दुरुपयोग – 33,000 से अधिक लोग जिनका नाम फॉर्म‑6 से डुप्लिकेट तरीके से जुड़ा
महादेवपुरा विधानसभा सीट पर कुल लगभग 1,00,250 वोटों की चोरी का भी दावा उन्होंने किया
महाराष्ट्र में ‘रहस्यमयी’ 40 लाख वोटर
साथ ही राहुल गांधी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में मोटे तौर पर 40 लाख नए वोटर घुसाए जाने की बात कही है, जो एकदम असामान्य और संदिग्ध है Navbharat Timesआज तक।
उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग ने डिजिटल वोटर लिस्ट न देने से इनकार किया, और CCTV फुटेज नष्ट कर दी गई—जो चुनाव की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है
चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण: “इंटरस्टिंग” प्रतिक्रिया
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को तुरंत खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि आरोप सुनने में रोचक (interesting) लगते हैं और इसकी समीक्षा की जाएगी Vijay Karnataka। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल को लिखित और सत्यापित सबूत के साथ जवाब देना चाहिए, अन्यथा आरोप निराधार हैं
बीजेपी की प्रतिक्रिया: “बिंदास आरोप” पर पलटवार
बीजेपी नेताओं ने राहुल गांधी की बातों को फिरक़ापरस्त और मनगढ़ंत करार दिया है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि बीजेपी की बड़ी जीत लोक कल्याण पहलों पर आधारित थी, और आरोप बेमतलब हैं The Economic Times।
वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी यह कहा कि अगर आपके पास ठोस सबूत हैं तो सार्वजनिक करें—वरना ये केवल झूठे आरोप हैं Navbharat Times।
बीजेपी नेताओं ने राहुल गांधी की मानसिकता पर टिप्पणी करते हुए “शिकायत से पहले दिमाग चेक कराओ” जैसी तीखी प्रतिक्रिया दी
कांग्रेस: लोकतंत्र बचाओ, विरोध प्रदर्शन
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीजेपी और आयोग पर आरोप लगाते हुए कहा:
“वोट चोरी एक व्यापक और व्यवस्थित घपला है—समाज और युवा जागरूक हों।” कांग्रेस बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित करेगी, जिसमें खड़गे, सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार भी शामिल होंगे
निष्कर्ष: लोकतंत्र की कसौटी पर सवाल
राहुल गांधी के आरोप ने भारत के चुनावी ढांचे की विश्वसनीयता को चुनौती दी है। यदि इन दावों पर सत्यापित और स्पष्ट जांच नहीं हुई, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और मत भरोसे (voter trust) को गहरा आघात पहुंचा सकता है।
प्रशासन और आयोग का मानना है कि आरोपों के लिए पुख्ता सबूत देने की आवश्यकता है। वहीं कांग्रेस का कहना है कि यह केवल शुरुआत है—आगे और खुलासे होंगे, और देश में लोकतंत्र बचाने का महान संघर्ष जारी रहेगा।
चुनाव आयोग पर लगे प्राथमिक आरोप (2015–2025)
1⃣ 2014–15: नागरिकता और नियुक्तियों पर राजनीतिक हस्तक्षेप
- न्यायपालिका और पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों ने ECI पर राजनीतिक प्रभाव व नियुक्तियों में पक्षपात का आरोप लगाया।
- Navin Chawla की नियुक्ति (संबंधित दल के समीपता को लेकर विवादास्पद) और अचानक होने वाले इस्तीफे—जैसे Arun Goel—इस बात के संकेत माने गए
2017–18: मतदान तिथियों की रचना विपक्ष पर लाभदायक?
- गुजरात और हिमाचल में चुनावी तिथियों को अलग समय पर आयोजित करने पर सवाल उठे। माना गया कि इससे बीजेपी को प्रचार के लिए अतिरिक्त समय मिला After the truth-shower।
- कर्नाटक विधानसभा चुनाव (2018): ECI ने BJP IT सेल प्रमुख Amit Malviya द्वारा पहले से ट्वीट की गई तिथियों की शिकायत की, लेकिन पार्टी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। कांग्रेस ने प्रतिबंध का आरोप लगाया
2019: VVPAT विवाद और COVID‑19 समय में राजनीतिक रैलियाँ
- EVMs के साथ Voter Verifiable Paper Audit Trail (VVPAT) की गिनती और संरक्षण पर असमानताएँ सामने आईं। ECI ने समय पर जवाब नहीं दिया, और VVPAT स्लिप्स 4 महीने में नष्ट कर दी गईं (रूल 1 साल होते हुए) After the truth-showerADR India।
- दूसरे COVID-19 लहर में, कई राज्यों में चुनाव आयोग को रैलियों के दौरान सुरक्षा आदेशों का उल्लंघन करने का जिम्मेदार माना गया; Madras HC ने आयोग की कड़ी आलोचना की थी
2021–23: Voter डेटा घोटाला और गोपनीयता का उल्लंघन
- कर्नाटक (2023) में Chilume Trust के माध्यम से वोटर डेटा इकट्ठा करने और विदेशी सर्वर पर संग्रहीत करने के आरोप लगाए गए; ECI जांच में था
सोशल मीडिया और प्रचार नियंत्रण:
- मई 2019 में, विपक्ष ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने NaMo TV जैसी BJP समर्थित चैनलों को हटाया नहीं, जिससे MCC का उल्लंघन हुआ Moneycontrol।
- व्यापक आरोपों में कहा गया कि ECI ने सोशल मीडिया और प्रचार सामग्री नियंत्रित करने में निष्क्रियता दिखाई
2024–25: वोट चोरी और पारदर्शिता की कमी
- राहुल गांधी ने कई राज्यों में चुनाव आयोग को BJP के पक्षपात का दोषी करार दिया—”मेड‑इन‑बीजेपी” जैसा आरोप The Times of IndiaThe Economic Times।
- कांग्रेस ने Bengaluru और Nagpur जैसे क्षेत्रों में मतदाता सूची में बड़े फेरबदल, फर्जी जोड़-घटाव और CCTV का नष्ट होना आरोपित किया The Times of India+1।
- Tamil Nadu में मज़दूरों का ‘guest worker’ आधार पर वोटिंग पर सवाल, जिसे सीदंबराम ने चुनाव आयोग की नीति का दुरुपयोग करार दिया The Times of India।
- CPI ने चुनाव आयोग को BJP के प्रति अधीनस्थ होने का आरोप लगाया, खासकर बिहार और तमिलनाडु में मतदाता सूची संबंधी मामले पर The Times of India।
- Mamata Banerjee ने SIR (Special Intensive Revision) को NRC का छुपा प्रारूप बताते हुए ECI पर गंभीर आरोप लगाए
सारांश तालिका:
वर्ष / अवधि | मुख्य आरोप / घटना |
---|---|
2014–15 | नियुक्तियों और राजनीतिक प्रभाव |
2017–18 | चुनाव तिथियों का फायदेमंद निर्धारण |
2019 | VVPAT गिनती, COVID रैली नियमन की आलोचना |
2021–23 | विड डेटा इकट्ठा/गोपनीयता उल्लंघन |
2024–25 | वोट चोरी, फर्जी वोटर, पारदर्शिता की कमी |
पिछले 10 वर्षों में, ECI पर आरोपों की एक श्रृंखला रही—from राजनीतिक प्रभाव और नियुक्तियों, तक डेटा सुरक्षा और वोट चोरी तक। ये आरोप संस्थागत विश्वसनीयता को चुनौती देते हैं और लोकतंत्र के मूलभूत विश्वास को कमजोर कर सकते हैं।